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गुलज़ार: एक व्यक्ति, एक व्यक्तित्व

18 अगस्त, 2016.  गुलज़ार आज 82 साल के हो गए. 1963 में आई फिल्म ‘बंदिनी’ में उन्होंने अपना पहला गीत, ‘मोरा गोरा अंग लई ले...’ लिखा था और आज पांच दशक के बाद भी गुलज़ार लिखते जा रहे हैं - बिना रुके, बिना थके. इन पांच दशकों में संगीत बदला, उसका ढंग बदला, दुनिया के चलन और तौर-तरीके बदले, दौर बदला और युग भी बदल गया, लेकिन गुलज़ार वही रहे – सबके पसंदीदा. वो कभी ‘आउट-डेटेड’ नहीं हुए. और ये सब सिर्फ इसलिए मुमकिन हो पाया क्यूंकि उनकी सोच हमेशा जवान रही, और आज भी है. गुलज़ार एक ‘मल्टी-टैलेंटेड पर्सनालिटी’ हैं लेकिन उनकी अधिकतम लोकप्रियता एक गीतकार के तौर पे ही है. मैं ये कहना गलत नहीं समझूंगा की साहिर और आनंद बख्शी के बाद वो इस दौर के महानतम गीतकार हैं. और मैं ये दलील इसलिए रख रहा हूँ क्यूंकि उन्होंने अपने गीतों में न सिर्फ ज़माने की रिवायतों को ताक पे रखा है बल्कि बार-बार उन्हें तोड़ा भी है. उदाहरण के तौर पे चाहे 'इजाज़त' का 'मेरा कुछ सामन...' को ले लीजिये जिसमें बात की गहरायी के लिए लय का कोई ध्यान नहीं रखा या फिर ''आंधी' का 'इस मोड़ से जाते हैं...' जो गीत कम...